अखिलेश चन्द्र अपनी कहानियों मे समाज का यथार्थ बड़ी बारीकी से बुनते हैं। उनकी कहानियों की पृष्ठभूमि ज़मीनी और गैरबनावटी है। डॉ. चन्द्र की “अनकही” कहानी संग्रह की 11 कहानियाँ बेजोड़ हैं। 11 की 11 कहानियाँ सभी एक से बढ़कर एक हैं। उनमें से कौन ज्यादा बेहतर है ये कहना कठिन है, क्योंकि उनकी कहानियाँ गाँव, किसान, स्त्री, दलित, शोषित वंचित वर्ग का प्रतिनिधित्व करती हुई जान पड़ती है।
अपने शीर्षक के विपरीत आचरण करती डॉ. अखिलेश चन्द्र की कहानी “अनकही” सीधे समाज से वार्तालाप करती है। आप शीर्षक पर मत जाइये क्योंकि यह कहानी हर छिन आपसे कुछ कहती हुई चलती है। इस कहानी का हर चुटीला कथन आपकी अन्तरात्मा को बेध देगा। आज की ज्वलन्त समस्या ‘भ्रूण हत्या’ के इर्द-गिर्द इस कहानी का ताना-बाना बुना गया है जो शहरी परिवेश के चरित्र को उघाड़ने व उसके बड़बोलेपन पर कुठाराघात करता है। आशा व राकेश की मॉडर्न इमेज पर जब रूढ़ियाँ विजय पा जाती हैं, नवीनता की पराजय जब प्राचीनता के हाथों हो जाती है, स्वार्थ जब प्रेम पर हावी हो जाता है, जिम्मेदारियाँ जब घुटन महसूस करती हैं तब कहीं जाकर ‘अनकही ‘ अस्तित्व में आती है।
कल्पना व यथार्थ के इस संगम का जितना लोमहर्षक वर्णन विद्वान लेखक ने किया है वह विरले ही देखने को मिलता है। इस कहानी का सबसे प्रबल पक्ष इसका संवाद है जो कि भ्रूण अपनी हत्या के पूर्व हर एक को लक्षित करके करती है।….बालिकाओं के प्रति समाज के पक्षपातपूर्ण रवैये को धिक्कारती यह कहानी एक जीवन्त दस्तावेज प्रतीत होती है। यह जीवन्त है तो इसके मायने हैं, इसके अर्थ हैं। यह वह सच है जो सभ्य समाज कभी स्वीकार नहीं पर पाता परन्तु भीतर ही भीतर बिलखता रहता है। यह विलाप और कुछ नहीं परन्तु अपनी कमी पर पर्दा मात्र है।….कोख में ही दम तोड़ देती बेटियों के पक्षधर बनते हुये डॉ. साहब सच के पैरोकार जान पड़ते हैं। वह एक संदेशवाहक बनकर समाज में विचरण कर रहे हैं कि ‘हाँ, बेटियाँ भी बेटों से कम नहीं’। वे भी इस धरती के उपभोग का माद्दा व अधिकार रखती हैं।….
नि:संदेह इस कहानी संग्रह में विद्रूप की फुसफुसाहट को मुखर आवाज देने का प्रयत्न किया गया है।
“अनकही ” (कहानी – संग्रह )
प्रकाशक – अयन पब्लिकेशन, नयी दिल्ली
मोबाइल – 9818988613