मन को त्राण यानि कष्ट से मुक्त करने वाले को मित्र कहा जाता है। किंतु देश काल परिस्थितियों के अनुसार सिर्फ़ भाषा ही नहीं भाव भी बदलते हैं। सो बदले हुए परिवेश में हम ये कह सकते हैं कि जो हमारे तन को प्राण से मुक्त करे, अर्थात जो हमारे प्राण ले ले, वह मित्र होता है।
मित्रों की कई प्रजातियाँ होती हैं। ज्योतिष में जैसे नौ ग्रह, बारह राशियाँ होती हैं, कुंडली में इन सभी ग्रहों और राशियों का अपना एक विशेष स्थान और महत्व होता है, साहेबान ध्यान रखिए हमारी कुंडली का अच्छा-बुरा होना इन्हीं ग्रहों की चाल और उनके प्लेसमेंट पर निर्भर करता है।
वैसे ही हमारे मित्र भी होते हैं, बिलकुल भिन्न गति, प्रकृति और स्वभाव वाले। इन मित्रों की चाल ही हमारी गति, सुगति या दुर्गति का कारण होती है, इसलिए आपकी सुविधा के लिए मित्रों के कुछ प्रमुख प्रकारों को यहाँ उल्लेखित कर रहा हूँ।
1- बाल सखा : इनके बारे में हम सब जानते हैं, हमारे बचपन के मित्रों को बाल सखा कहा जाता है। इन्हीं में से कुछ आगे चलकर हमारे काल सखा हो जाते हैं।
2- काल सखा : काल सखा उसे कहा जाता है जो कालान्तर में समय, काल, परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए लाभ-हानि के गणित से आपका मित्र बनता है और स्वार्थ सिद्ध होने के बाद आपको दूध में पड़ी मक्खी बताकर फेंक देता है।
काल सखा मित्रता के लिए काल के जैसा भी होता है, वह मित्र को समाप्त करने के साथ-साथ मित्रता को भी लील लेता है और उसे उदरस्थ करने के पश्चात डकार भी नहीं लेता।
किंतु गैस तो गैस है भाई, वह ऊपर से ना निकल पाए तो अधोगामी होकर नीचे से निकलकर वातावरण को दूषित कर देती है कभी आवाज़ के साथ तो कभी बेआवाज़।
लेकिन काल सखा टाइप के व्यक्ति ध्वनि प्रदूषण के विरोधी होते हैं इसलिए वे गैस को बेआवाज़ निष्कासित करने में विश्वास रखते हैं। उनका यह कृत्य भयंकर वायु प्रदूषण की उत्पत्ति का कारक होता है। लेकिन चूँकि काल सखा इस सूक्ति वाक्य में विश्वास रखता है- ‘उत्तम पाद धड़ाका नाम, टूमटाम चा मध्याम, फिस्फिसी चा प्राण घात..’ इसलिए वह वायु को बेआवाज़ प्रदूषित करने में तनिक भी संकोच नहीं करता क्योंकि वह वायुमंडल की हवा बिगाड़ने, हवा निकालने में विश्वास रखता है।
3- पाल सखा : ये वे मित्र हैं जिनके पालन पोषण की जिम्मेदारी हमारी होती है, ये हमारे सोकर उठने से पहले अपनी उपस्थिति दर्ज करा देते हैं और हमारे सोने तक ये हमारे सामने उपस्थित रहते हैं। ये आपके द्वारा दुत्कारे जाने, भगाए जाने का बुरा नहीं मानते। ये मान अपमान से ऊपर उठे हुए होते हैं लगभग वीतरागी अवस्था को प्राप्त कर चुके होते हैं।
4- ढाल सखा : ये हमारे लिए ढाल के जैसा काम करते हैं, हमारी तरफ़ आने वाली हर विसंगति को ये अपने ऊपर झेलते हैं। आप इन्हें स्वयं के कुकर्मों का रक्षक मान सकते हैं। हम कितनी ही शिट क्यों ना करें ये हमें धुलाने का काम तत्परता से करते हैं। आप इन्हें अपनी मम्मी का सब्स्टीट्यूट मानना चाहें तो कोई हर्ज नहीं है।
5- जाल सखा : ये आपके इर्द-गिर्द जाल बिछाने के काम करते हैं, जिससे आप सदैव स्वयं को फसा हुआ महसूस करें और इनके द्वारा आप बंधन मुक्त हो जाएँगे की आशा से भरे रहें। किंतु ये आपको एक जाल से निकालकर दूसरे जाल में फँसा देते हैं। ये मूलत: जालसाज़ होते हैं।
स्मरण रखिए- साज़ यानि वाद्ययंत्र जो बजता है और साजिदे मतलब वाद्ययंत्र को बजाने वाला, तो कुल मिलाकर ये आपको या आपकी बजाते रहते हैं।
6- हाल सखा : ये वो हैं जो हर हाल में सबसे पहले आपका हाल पूछते हैं। आपकी पूरी जानकारी, जन्म प्रमाण पत्र से लेकर आधारकार्ड तक अपने पास होने का दावा करते हैं। इन्हें आपकी समस्या के उपचार में नहीं, समस्या के प्रचार में रुचि होती है। प्रचार ही उपचार है के मंत्र का ये जुनून की हद तक पालन करते हैं। जिसके कारण संसार को यह भ्रम उत्पन्न हो जाता है कि सिर्फ़ ये ही आपके सबसे सगे हैं। आपके जन्मदिन से लेकर उठवाना तक आप इन्हें नहीं इनके संदेशों को इंस्टाग्राम से लेकर सोशल मीडिया के हर उस प्लेटफ़ॉर्म पर पाएँगे जिसमें संसार इसे नोटिस कर ले, क्योंकि इन्हें आपसे नहीं आपकी दुनिया से अधिक मतलब होता है। यह बेहद ख़तरनाक रिश्ता है, इससे बच पाना भगवान के लिए भी कभी-कभी मुश्किल हो जाता है।
7- चाल सखा : ये आपकी तरक्क़ी को पहले ही सूंघ लेते हैं, इन्हें पता होता है कि आपकी चाल बढ़ने वाली है। इसलिए ये आपको तभी पकड़ लेते हैं जब आप दौड़ने से पहले वॉर्मअप की प्रक्रिया में होते हैं, आपका मनोबल कितना ही बढ़ा हुआ क्यों ना हो ये फिर भी उसे बढ़ाने का काम करते हैं। जिससे आप अपनी सफलता का श्रेय इनकी झोली में डालकर इनके प्रति अनुग्रह के भाव से भरे रहें।
मूलत: ये चलती हुई गाड़ी में लपककर चढ़ने में विश्वास रखते हैं और यदि किसी कारणवश आपकी चलती हुई गाड़ी कुछ समय के लिए रुक जाए, तो ये आपकी गाड़ी छोड़कर दूसरी चलती हुई गाड़ी में लपककर चढ़ने में देर नहीं करते।
8- माल सखा : ये आपके नहीं आपके पास उपलब्ध ‘माल’ के सखा होते हैं। किंतु आपको इस बात की भनक तक नहीं लगने देते। ये मूलत: आपकी जली-जलाई बीड़ी से अपनी बीड़ी जलाने की जुगत में रहते हैं। इनके पास अपनी माचिस नहीं होती। (नोट- स्मरण रखें, भारत में ‘माल’ के कई अर्थ हैं, इसलिए माल मित्रों से ‘अपने माल’ की रक्षा करना आपकी नैतिक जिम्मेदारी है।
9- लाल सखा : ये सदैव आपके प्रति ग़ुस्से से भरे होते हैं। ईष्र्या की अग्नि में तपकर ये लाल हो चुके होते हैं, आपके द्वारा इनके इस व्यवहार पर आपत्ति दर्ज करने पर ये संत कबीर के दोहे- निंदक नियरे रखिए, आँगन कुटी छवाय..का आश्रय लेकर आपको ही ग्लानि से भर देते हैं और आप चाहते हुए भी इनका साथ नहीं छोड़ पाते। क्योंकि इन्होंने आपको कबीर दास जी के दोहे से कन्फ़्यूज़ कर दिया होता है कि सच्चा मित्र चापलूस नहीं होता वह निंदक होता है और इसकी आड़ में वे सदैव सरेआम आपकी खटिया खड़ी करते रहते हैं, परिणामस्वरूप आप कुड़मुड़ाते हुए इनकी दुष्टता को भी शिष्टता मानकर इनसे चिपके रहते हैं।
10- गाल सखा : ये सिर्फ़ आपके पक्ष में गाल बजाने का काम करते हैं। धोखे से आप यदि दिन को रात कह दें तो ये तुरंत सूर्य को चंद्रमा बताने लगेंगे। इतना कि एक समय बाद आपको स्वयं भी तपता हुआ सूरज शीतल चंद्रमा दिखाई देने लगेगा।
11- टाल सखा : ये आपको या आपसे सम्बंधित किसी भी बात को टालने में महारथी होते हैं। ये सिर्फ़ आपको टहलाने में विश्वास रखते हैं, ये टहला-टहलाकर आपको थका डालते हैं। किंतु इनकी कला ये होती है कि, आप अब मिलेगी-अब मिलेगी की आशा में गोल-गोल इनके चक्कर लगाते रहते हैं और अंत में चकराकर बिना कुछ प्राप्त किए ही आपके प्राण पखेरू उड़ जाते हैं। किंतु एक अच्छी बात यह है की आपके जीते जी जो सम्भावनाएँ संसार को आपमें दिखाई नहीं देती थीं आपके मरने के बाद टाल सखा उन्हीं सद्गुणों को संसार के सामने प्रकट करके आपको एक अच्छे सर्वगुण सम्पन्न कार्यकर्ता के रूप में स्थापित कर देता है।
12- खाल सखा : ये आपकी खाल से चिपके हुए होते हैं, बिलकुल कर्ण के कवच कुंडल के जैसे.. संसार को ये आपका प्रतिरूप दिखाई देते हैं। ये आपसे ही आपकी खाल खिंचवाने की कला में निपुण होते हैं, और आपकी खाल उतरवाकर ही दम लेते हैं। यदि आप दुनिया के सबसे बड़े कंजूस हैं तब भी ये अपनी बातों से आपको दानवीर कर्ण के जैसा महसूस कराते हैं ताकि आप भावावेश में अपने ही हाथों से अपनी खाल खींचकर किसी और को दान कर दें और अंत में मारे जाएँ।
मित्रों की और भी कई उप प्रजातियाँ होती हैं जैसे – परम मित्र, चरम मित्र, नरम मित्र, गरम मित्र, शरम मित्र, भरम मित्र, मरम मित्र, धरम मित्र इत्यादि। चूँकि हम मित्रों को बहुत महत्व देते हैं इसलिए इनके आकार पर नहीं प्रकार पर हमें दृष्टि डालनी चाहिए। स्मरण रखिए मित्रता एक विचार है इसे व्यक्ति मानने की भूल ना करें। इसलिए व्यक्तियों से मिले हुए कटु अनुभवों को लेकर मित्रता रूपी विचार के प्रति कड़वाहट से ना भरें, क्योंकि मंत्र और मित्रता ये दोनों ही हमारे मन को त्राण से मुक्त करते हैं।